Vijay Batra (KARMALOGIST) पिछले कई वर्षों से अंधविश्वास और रुढ़िवादी मान्यताओं को समाप्त करने के लिए अपने अद्वितीय गूढ़ज्ञान से भ्रमित और भयभीत लोगों का मार्गदर्शन कर रहे है | भारत और विदेशों में रहने वाले हजारों लोगों द्वारा इनके सटीक तर्कों और उद्धाहरणों की सराहना की गयी है | इन्होने आध्यात्म और कर्मफल के रहस्यमयी ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने के लक्ष्य से शून्यसंहिता की रचना भी की है जिसमे सभी आध्यात्मिक प्रश्नों के तार्किक उत्तर लिखे है जो व्यक्ति का अंधविश्वास समाप्त करके निडर और सकारात्मक होने में सहायता करते है | इनका कहना है कि धर्म,आध्यात्म नहीं है और हर धार्मिक व्यक्ति को आध्यात्मिक होने की आवश्यकता है इसीलिए ये धर्मरहित आध्यात्म का प्रचार कर रहे है | आप भी इनके गूढ़ आध्यात्मिक ज्ञान का लाभ उठाये |
Vijay Batra (KARMALOGIST) का कहना है कि जब व्यक्ति के कार्य उसकी इच्छा के अनुसार नहीं होते या उसे भविष्य की अकारण चिंता होती है तब वह ज्योतिष विज्ञान पर निर्भर हो जाता है | ज्योतिष एक महान विज्ञान है जिसमे ग्रहों की स्थिति द्वारा व्यक्ति की मानसिक और आर्थिक स्थिति को पढ़ा जा सकता है | व्यक्ति के पास धन ना होने के बावजूद ज्योतिषी द्वारा किसी समस्या के लिए बताये गए उपायों पर वह लाखों रूपए का खर्चा करने को भी तैयार हो जाता है क्योंकि ज्योतिषी ने यह कहा होता है कि ऐसा करने से उसका भाग्य बदल जायेगा, सुख समृद्धि आएगी और सभी समस्याएं समाप्त हो जाएँगी | प्रतिदिन ऐसे अनेकों लोग Vijay Batra (KARMALOGIST) के पास मार्गदर्शन के लिए आते है जिन्हें सभी प्रकार के उपायों को करने के बाद भी कोई लाभ नहीं मिला और वह स्वयं को ठगा हुआ अनुभव करते है |
Vijay Batra (KARMALOGIST) अपने तार्किक ज्ञान से भिन्न-भिन्न विज्ञानों को समझाते है इनमे सबसे पहला ज्योतिष विज्ञान है | इस बात से भी आप सहमत होंगे कि व्यक्ति को अपने पिछले कर्मों के अनुसार ही सब कुछ मिलता है परन्तु इन पिछले कर्मों को इस जन्म में बदला नहीं जा सकता | यदि आप चालीस वर्ष की आयु में अपनी जन्मकुंडली को देखते हैं या किसी ज्योतिषी को दिखाते है तब भी ग्रहों की स्थिति वही होगी जो जन्म के समय पर थी । जिस भाव में जो ग्रह स्थित है वह जीवनकाल में कभी भी देखने पर वैसे ही स्थित रहता है जैसे वह जन्म के समय पर था और उसका अपना मूल प्रभाव वैसा ही रहता है जो ज्योतिष विज्ञान में बताया भी जाता है | Vijay Batra (KARMALOGIST) द्वारा बात स्पष्ट है कि संसार में ऐसा कोई भी ज्ञानी या विद्वान नहीं है जो उनमे से किसी ग्रह को उठा कर किसी दूसरे भाव में रख दे । जैसे एक सेकेण्ड पहले बोली गयी बात को वापिस मुख के अंदर नहीं लिया जा सकता, वैसे ही किसी उपाय द्वारा पिछले जन्मो में किये कर्मो को या उनके फल को बदला नहीं जा सकता | भाग्य बदलने के नाम पर किए और करवाए गए आज के सभी कर्मों का फल पिछले कर्मों के फल के साथ व्यक्ति को ही भुगतने है | आज को बदलने के लिए बीते हुए कल को बदलने का प्रयास करने वाला व्यक्ति मूर्ख और भ्रमित कहलाता है ।
जब से ज्योतिष का मीडिया के माध्यम से व्यवसायीकरण हुआ है तब से प्रत्येक ज्योतिषी अधिक से अधिक उपायों और प्रयोगों को बताकर भोले-भाले लोगों को प्रतिदिन किसी उपाय पर निर्भर होने की आदत डाल रहा है | आध्यात्म नियम के अनुसार आत्मा को अपने पिछले किए सभी कर्मों का फल भोगकर ही समाप्त करना होता है | जो लोग प्रतिदिन किसी उपाय की खोज में रहते है कि आज क्या किया जाये कि दिन अच्छा बीते, ऐसे लोग अपने दिमाग या अपनी योग्यता का पूरा लाभ नहीं उठा पाते क्योंकि उनका अधिकतर समय टीवी पर देखे उपायों के बारे में सोचने में ही व्यतीत हो जाता है | व्यक्ति को अधिक भयभीत करने के लिए शनि और पितृदोष जैसे शब्दों का जमकर प्रयोग होता है परन्तु यदि इसे तर्क के आधार पर समझा जाये तो अपनेआप यह ज्ञान हो जाता है कि इन शब्दों का प्रयोग केवल मूर्ख बनाने के लिए किया जाता है | शनि का नाम सुनते ही सभी डरने लगते है कि ना जाने अब कौन सी समस्या का सामना करना पड़ेगा |
शनि
आइये समझने का प्रयत्न करते है कि शनि ऐसा क्या करता है जिससे हमें डर लगता है और हम उस डर से किस प्रकार से बच सकते है | यदि हम वैज्ञानिक दृष्टि से शनि तथा उसके प्रभाव को समझने का प्रयास करे तो शंका और डर को समाप्त किया जा सकता है | हम सभी जानते है कि सूर्य के चारो तरफ सभी ग्रह चक्कर लगाते हैं जैसे पृथ्वी एक वर्ष में अपना चक्कर पूरा करती है और पृथ्वी पर सूर्य की रौशनी और गर्मी पहुँचती है | शनि तीस वर्षो में सूर्य के चारों ओर अपना चक्कर पूरा करता है और सौरमंडल में शनि सूर्य से सबसे दूर का ग्रह है इसलिए शनि पर सूर्य की रौशनी/प्रकाश तथा ऊष्मा/गर्मी बिलकुल भी नहीं पहुँचती इसलिए शनि पर अँधेरा और बर्फ है | सभी ग्रह अपनी गति, आकार तथा स्वभाव के हिसाब से ही पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवो को प्रभावित करते है | इसका सीधा यह अर्थ हुआ कि शनि धीमा करने वाला , ठंडा करने वाला तथा उस पर अँधेरा होने के कारण नकारात्मक करने की क्षमता रखने वाला ग्रह है | जब हमें ठण्ड लगती है तो हम गरम कपडे पहनते हैं और जब हम अँधेरे में होते है तो हम प्रकाश(लाइट) का प्रयोग करते है | जब हम कही जल्दी पहुंचना चाहते है तो किसी तेज़ सवारी का प्रयोग करते है ठीक उसी प्रकार यह समझने कि आवश्यकता है कि आज शनि हमें किस प्रकार से प्रभावित कर रहा है और हमें क्या करना चाहिए | यदि इस तर्क को समझ लिया तो शनि की सूक्ष्म किरणे कभी भी नकारात्मक प्रभाव नहीं कर सकती |
शनि और उसके ६२ चंद्रमा : सभी ने यह सुना हुआ है कि देवी देवताओं के पास अनेकों कलाएं होती थी अर्थात वह देवी-देवता उन कलाओं जितनी शक्तियों से संपन्न थे और व्यक्ति को उतने ही प्रकार से सहायता करते थे | किसी देवता को १४ तो किसी देवता को १६ कलाओं से संपन्न कहा गया है | Vijay Batra (KARMALOGIST) का कहना है कि शनि ग्रह ६२ कलाओं से संपन्न है, शनि ६२ तरह के नकारात्मक प्रभाव करता है क्योंकि शनि ग्रह पर अंधेरा अर्थात नकारात्मकता है | हम सभी जानते है कि शनि अपनी सूक्ष्म किरणों द्वारा पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवो को निरंतर प्रभावित करता है | अपनी सभी समस्याओं से बचने के लिए इन ६२ वस्तुओं का ज्ञान होना भी अति आवश्यक है |
शनि ग्रह है या देवता :- संसार में शनि की क्रूर दृष्टि से डरने वालों की कमी नहीं है, इसी डर के कारण पूजा अर्चना करके शनि को प्रसन्न करने की कोशिश भी की जाती है | विचार करने वाली बात यह है कि शनि ग्रह है या देवता ! यदि शनि अन्य देवी देवताओं की तरह देवता है तो धार्मिक लोगों द्वारा शनि-देव की पूजा होनी ही चाहिए परन्तु ऐसा भी कहा जाता है कि देवी-देवता किसी का अनिष्ट नहीं करते इसलिए शनि-देव से डर भी नहीं होना चाहिए, यदि शनिदेव से कोई मनुष्य डरता है तो यह उसकी मूर्खता ही कहलाएगी | ऐसा भी सभी मानते हैं कि शनिदेव, सूर्यदेव के पुत्र है और वे सारे संसार के न्यायधीश है |
- अब प्रश्न यह है कि सूर्यपुत्र शनि-देव के जन्म से पहले, और शनिदेव को न्यायभार मिलने तक संसार में कोई न्याय नहीं होता था, यदि होता था तो वो कौन करता था ?
- शनि-देव के जन्म से पहले और जिस समयकाल को सतयुग कहते है जिसमे देवी-देवताओं का जन्म हुआ उस समय में शनि-ग्रह (जो सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाता है) नहीं था, और यदि था तो उसका नाम शनिग्रह कैसे था ?
दूसरी ओर शनिग्रह की धीमी गति, शनिग्रह की तिरछी दृष्टि और शनिग्रह द्वारा मिलने वाली समस्याएं और विपदाओं का वर्णन होता है जिसके कारण शनिग्रह को मानने वाले सभी लोग डरते भी है | यदि निष्पक्ष और निडर होकर विचार करे तो संसार की उत्पत्ति और मनुष्य जन्म के समय सभी ग्रह आकाश में थे जिनके प्रभाव से ही संसार सुचारू रूप से चल रहा है | जब सूर्यपुत्र शनिदेव का जन्म हुआ होगा तब भी शनिग्रह आकाश में गतिमान था, ऐसा नहीं हो सकता कि किसी वरदान के कारण रातोंरात किसी ग्रह की उत्पत्ति हो गयी हो और वह सूर्य के चारों ओर चक्कर भी लगाना आरम्भ कर दे | आज तक की प्रचलित कथाओं और कहानियों में सूर्य और शनि दोनों की आपस में कभी नहीं बनी, इन्ही कहानियों के आधार पर इस बात को सभी मानते भी है | विचारणीय बात यह भी है कि जब शनि की सूर्य से बनती ही नहीं, दोनों की आपस में घनी शत्रुता है तो शनि अपने शत्रु के चारों ओर चक्कर क्यों लगा रहा है ! अज्ञानता और सुनी सुनाई बातें धार्मिक व्यक्ति को बहुत अधिक भ्रमित और भयभीत करने का कार्य करती है |
शनिदेव न्याय के देवता है यह बात शनि में विश्वास रखने वाले अधिकतर लोग मानते है | एक सत्य यह भी है कि न्यायाधीश अपना निर्णय या न्याय बताने के लिए किसी के पीछे या उसके घर नहीं जाते उसके लिए न्यायालय के चक्कर लगाने पड़ते है | यदि किसी व्यक्ति को ऐसा लगता है कि उसके जीवन में हो रही घटनाएं उसके स्वयं के कर्मफल के अनुसार नहीं हो रही है तो वह शनिदेव के पास जाकर न्याय की गुहार कर सकता है | इस गुहार के न्याय में शनिदेव उसे आत्मज्ञान देते है जिससे व्यक्ति को अपनेआप यह ज्ञान होने लगता है कि उसे, उसके किस कर्म का फल मिल रहा है | यह ज्ञान इसी जन्म में होगा या अगले किसी जन्म में होगा यह भी निश्चित नहीं है क्योंकि शनिदेव (न्यायाधीश) दूसरों के कहे पर नहीं अपनी इच्छा से कार्य करते है | अब यह व्यक्ति के अपने वर्तमान कर्मों के आधार पर ही निर्भर होता है कि उसे आत्मज्ञान कब और कैसे होता है |
शनिग्रह अन्य ग्रहों की भांति आकाश में स्थित है जो सूर्य के चारों और चक्कर लगाता है और इसकी सूक्ष्म किरणें भी अन्य ग्रहों के ही भांति ही अन्य सभी ग्रहों पर पड़ती है जिसमे पृथ्वी भी है | शनिदेव सूर्यदेव के पुत्र हैं जिनका कार्य आवश्यकता पड़ने पर न्याय करना है | अज्ञानता और दुष्प्रचार के चलते सभी लोग शनिदेव और शनिग्रह दोनों को एक समझते है जो तर्कहीन है | शनिदेव को शरीर छोड़े लाखो वर्ष हो चुके है जबकि शनिग्रह करोडो सालो से आकाश में गतिमान है और जिसकी सूक्ष्म किरणें हर युग के हर जीव पर पड़ती है, अनेकों कहानियों में ऐसा भी कहा गया है कि शनि से देवी-देवता भी नहीं बच पाए थे |
Vijay Batra (KARMALOGIST) इस बात को भी स्पष्ट करते है कि देवी-देवता शनिग्रह की शूक्ष्म किरणों से नहीं बच पाए थे क्योंकि उस समय शनिग्रह आकाश में उपस्थित था | यह बात समझने वाली है कि यदि देवी-देवता किसी का अनिष्ट नहीं करते तो शनिदेव भी अनिष्ट नहीं कर सकते | एक और बात विचार करने योग्य है कि किसी देवता की पूजा अर्चना करने से देवता अवश्य प्रसन्न होते होंगे परन्तु वह भी किसी पापकर्म के फल को समाप्त नहीं कर सकते क्योंकि शनिग्रह की सूक्ष्म किरणों से देवी देवता भी नहीं बचे थे | शनिग्रह की सूक्ष्म किरणों के आधार पर ही सूर्यपुत्र शनिदेव का भी स्वभाव, रंग रूप और जीवन वैसा था | जो शनिदेव स्वयं शनिग्रह की सूक्ष्म किरणों से नहीं बचे थे वह किसी भी जीव को शनिग्रह से कैसे बचा सकते है | Vijay Batra (KARMALOGIST) ऐसा नहीं कहते कि शनिदेव की पूजा-अर्चना छोड़ दो या शनिग्रह की पूजा आरंभ कर दो, उनका मानना और कहना यह है कि ग्रहों की पूजा करने से व्यक्ति को केवल मानसिक संतोष मिलता है कि अब ग्रहों से उसे कोई हानि नहीं है जबकि ग्रह कभी भी शांत या अशांत नहीं होते, आकाश में ग्रहों की गति सदैव एक जैसी ही रहती है | कोई व्यक्ति पूजा करे या नहीं करे देवी देवताओं या ग्रहों को कोई लेना देना नहीं है ना ही वे पूजा नहीं करने वालों से प्रसन्न या अप्रसन्न होते है यदि ऐसा होता तो संसार की आबादी में पूजा करने वालों से अधिक संख्या पूजा नहीं करने वालों की है | यह जीवों के स्वयं के कर्मों का फल है कि उन्हें अपना जीवन अंधविश्वासों और निराधार मान्यताओं में व्यतीत करना पड़ता है |
Vijay Batra (KARMALOGIST) के अनुसार यह बात सभी को समझनी चाहिए कि संसार में कुछ प्राकृतिक नियम है जिसमे हर कर्म का एक निश्चित फल है जो देवी-देवता और सभी जीवों पर बराबर लागू होता है | पूजा अर्चना, दान पुण्य, इत्यादि सांसारिक सुखों एवं स्वार्थ के लिए किए जाते है, आत्मिक सुख का किसी भी कर्म या उसके फल से कोई लेना देना नहीं है | पूजा-अर्चना इत्यादि करना अपने मन को व्यस्त रखने और समय व्यतीत करने का एक अच्छा साधन है | शनिदेव या शनिग्रह से डरने या उनकी पूजा करने से पहले व्यक्ति को यह ज्ञान होना चाहिए कि वह न्याय की गुहार कर रहा है या अकारण डर रहा है | सत्य यह है कि व्यक्ति कितनी भी गुहार लगाये या भयभीत हो कर्मफल से कभी नहीं बच सकता |
Vijay Batra (KARMALOGIST) का कहना है कि अपने समय, धन और ऊर्जा को अंधविश्वासों और मान्यताओं में नष्ट करने से अच्छा है कि उनका सदुपयोग आत्मज्ञान के लिए किया जाये |
पित्रदोष
Vijay Batra (KARMALOGIST) के तार्किक एवं आध्यात्मिक ज्ञान से अब पित्रदोष को भी समझ लेते है कि आखिर पित्रदोष किस समस्या का नाम है | यह वास्तव में यह कोई गंभीर समस्या है या इसे भी किसी निजी लाभ के लिए फैलाया हुआ भ्रम है ! समस्याओं के लिए अनेकों उपायों को करने के बाद भी जब व्यक्ति को कोई लाभ नहीं मिलता तब उसे पित्रदोष बताया जाता है | सभी ने पित्रदोष के बारे में पढ़ा-सुना है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में पित्रदोष हो उसे जीवन में अनेक प्रकार की समस्याओं और बाधाओं का सामना करना पड़ता है | पित्रदोष का अर्थ यह बताया जाता है कि किसी व्यक्ति के पूर्वजो का उससे रुष्ट (नाराज़) हो जाना, इसीलिए व्यक्ति पूर्वजो को मानने का हर संभव प्रयास करता है | पित्र कैसे प्रसन्न होंगे इसका मूल ज्ञान ना होने के कारण व्यक्ति को जो भी उपाय बताये जाते हैं वह उन उपायों को ह्रदय से करता है कि किसी भी प्रकार से पित्र प्रसन्न हो जाये और जीवन की सभी समस्याएं समाप्त हो |
प्रश्न यह है कि पित्र रुष्ट क्यों होते है, जिसके लिए व्यक्ति हर संभव और असंभव प्रयास करने के लिए विवश हो जाता है | कुछ लोगो ने अपने दादा को देखा होगा और ऐसे लोग बहुत ही कम होंगे जिन्होंने अपने पडदादा (दादा के पिता) को देखा होगा | आप सहमत होंगे कि पित्रों का अर्थ दादा, पडदादा, पडदादा के पिता या फिर उनके भी दादा पडदादा है | कोई भी माता पिता अपनी संतान का बुरा नहीं सोचेंगे या करेंगे, और ना ही उनका बुरा होते देख सकते है वो सदा चाहेंगे कि उनकी संतान सुखी और समृद्ध रहे |
- जिन पितरों ने हमें देखा नहीं या हमारा उनसे कोई लेना-देना नहीं रहा वो हमसे रुष्ट कैसे होंगे?
- उन्हें क्या पता कि उनकी तीसरी-चौथी या अगली किसी पीढ़ी में हम जन्म लेंगे?
- जिनबड़े बुज़ुर्ग से हमारी कभी बात नहीं हुई वो आशीर्वाद देने के बजाय रुष्ट क्यों होंगे या श्राप क्यों देंगे ?
- परिवार में कोई जातक जन्म ले तो दादा या पडदादा प्रसन्न होने के बजाय उससे रुष्ट क्यों होगा चाहे वो कैसा भी हो?
- जब हमारा जन्म हुआ तब यदि पित्र किसी अन्य योनी(शरीर) में जन्म ले चुके होंगे तो उनके लिए किये गए उपायआदि का उन्हें पता कैसे लगेगा कि वह प्रसन्न हों ?
सभी को पता है कि हर व्यक्ति अपने-अपने कर्म भोगने संसार में जन्म लेता है यहाँ जो भी हो रहा है वह अपने ही द्वारा किए कर्मो का फल है जिसे भाग्य कहा जाता है |
- यदि सभी अपने अपने कर्मो के अनुसार सुख-दुःख, समस्याओं या बाधाओं का सामना करते हैं तो पित्रदोष क्या है? क्या भोले भाले लोगो को अपने निजी लाभ के लिए डराया जाता है ?
- क्या लाखो रूपए खर्च करके किए गए पित्रदोष के उपाय केवलनिजी लाभ के लिए हैं?
- जिन लोगों को जन्मकुंडली में विशवास नहीं है क्या उनके पित्र उनसे रुष्ट नहीं होते, यदि होते है तो क्या वह प्रसन्न नहीं होते क्योंकि उपाय तो किए ही नहीं जाते ?
ऐसी बहुत सी बातें विचार करने योग्य है कि व्यक्ति को जो बताया गया है वह कितना न्यायसंगत है और कितना डराने के लिए है | जातक के जन्म के समय आकाश के ग्रहों की स्थिति को जन्मकुंडली कहते है जन्मकुंडली मे बारह भाव और नौ ग्रहों की गणना की जाती है | स्वाभाविक सी बात है कि इन बारह भावों में नौ ग्रह किसी ना किसी भाव में ही स्थित होंगे | भृगु ऋषि जी ने इन ग्रहों की स्थिति द्वारा ऐसी गणना बनायीं थी जिससे यह पता लगाया जा सकता है कि जातक के पिछले कर्मो के फल का उस पर क्या प्रभाव है और भविष्य के लिए वर्तमान ग्रह स्थिति के अनुसार वह किस प्रकार के कर्म कर सकता है | पित्रदोष जैसे अनेको ऐसे शब्द है जो केवल डराने और निजी लाभ के लिए बनाये गए है | अब आप स्वयं ही यह निश्चित कीजिये कि किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में पित्रदोष हो सकता है या नहीं !
देवी-देवता
यह प्रश्न लाखों लोगों के मन में भी होगा कि हमारा देवी-देवता कौन सा है यानी हमें किस देवी या देवता की पूजा करनी चाहिए, अभी जिस देवी-देवता की पूजा कर रहे है उसमे कोई गलती तो नहीं हो रही है ?
जन्मकुंडली देखकर ज्योतिषियों द्वारा देवी या देवता बताया जाता है कि केवल इसी देवी-देवता की पूजा आराधना से सारे सांसारिक कष्ट समाप्त होंगे और मोक्ष भी मिलेगा, यदि ऐसा नहीं किया गया तो देवी-देवता रुष्ट हो जायेगें | Vijay Batra (KARMALOGIST) कहते है कि यह बहुत दुःख वाली बात है कि दुखी और भटके लोगों का मार्गदर्शन करने वालों ने भोले-भाले लोगों को इतना अधिक भ्रमित कर दिया है कि वे लोग देवी-देवता की पूजा अर्चना भी करते रहते है और पाप-पुण्य के भय तथा सही-गलत के भ्रम में अपनेआप को बिना कारण पापी भी मानने रहते है | गुरु, ज्ञान और धर्म, इन तीनो का कार्य भय तथा भ्रम को समाप्त करना है, इनका प्रयोग साधारण व्यक्ति को भ्रमित और भयभीत करने के लिए नहीं होना चाहिए | श्री बतरा जी की आध्यात्मिक दृष्टि से इस बात को समझते है कि किसी व्यक्ति का देवी या देवता कौन सा होना चाहिए !
Vijay Batra (KARMALOGIST) का कहना है कि संसार में करोड़ों ऐसे लोग है जो देवी-देवताओं को नहीं मानते, परन्तु उन पर भी आकाश में स्थित ग्रहों का उतना ही प्रभाव होता है जितना देवी-देवता को मानने वालों पर होता है, क्योंकि सूर्य यह सोच कर नहीं दिखता कि कौन मेरी पूजा करता है, केवल उसके घर में रौशनी हो जो पूजा करता है और दूसरों के घर पर अँधेरा हो | जो लोग धर्म में विश्वास नहीं रखते उन लोगों का भी पिछले जन्मों का कर्मफल होता है तभी उन्हें मनुष्य जन्म मिला है, यह दूसरी बात है कि वो लोग इसको किसी विज्ञान द्वारा नहीं पढ़ते | किसी भी देवी-देवता की पूजा करने से उसका फल उल्टा कैसे मिलेगा यदि व्यक्ति की श्रद्धा और उसका विश्वास सच्चा है | व्यक्ति के स्वयं की श्रद्धा और विश्वास अडिग हो तो पत्थर में से भी मनचाहा देवता मिल जाता है | देवी-देवता बताने वालों की गणना के अनुसार ऐसे लोगों का जीवन कभी भी सरल नहीं होगा जो लोग ईश्वर में तो विश्वास रखते है परन्तु देवी-देवता को नहीं मानते | ऐसे लोगों के बारे में वे क्या कहेंगे जिनके लिए गुरु ही सर्वत्र है क्योंकि गुरु को देवी-देवताओं से भी ऊपर कहा और माना गया है | देवी-देवता निर्धारित करने वालों को इस बात का ज्ञान कैसे होता है कि पिछले जन्म में व्यक्ति इसी धर्म में था, इस बात को बताने वाले ने अपनी कौन सी चौथी दृष्टि का प्रयोग किया यह भी अपने आप में दिलचस्प बात है |
एक और विचारणीय बात है कि यदि व्यक्ति पिछले जन्म में दूसरे धर्म या देवी-देवता को मान रहा था और इस जन्म में किसी अन्य देवता की पूजा-आराधना करने के लिए बता दिया तो किसी अन्य देवी-देवता की पूजा इत्यादि बताने वाले व्यक्ति ने दूसरों को भ्रमित करने का पाप करके स्वयं के लिए ही नरक निश्चित कर लिया है | ईश्वर एक है और निरकार है, देवी-देवता ईश्वर के मंत्री है जिनके पास अपना-अपना विभाग है, व्यक्ति अपनी सांसारिक इच्छा और आवश्यकता के अनुसार किसी भी विभाग में जाकर मंत्री से मिल सकता है | जो लोग देवी-देवताओं को नहीं मानते उनके कार्य भी वैसे ही होते है जैसे देवी-देवताओं को मानने वालों के होते है | ज्योतिषियों द्वारा आपका देवी-देवता बताकर भ्रमित किया जाता है या सही मार्गदर्शन किया जाता है अब यह आप स्वयं ही तय कर सकते है |
साधारण व्यक्ति में आध्यात्मिक शिक्षा का अभाव देवी-देवता के नाम पर मूर्ख बनाने वालों के लिए सफलता की कुंजी है | व्यक्ति को इतनी आध्यात्मिक शिक्षा अवश्य होनी चाहिए जिससे वह अपना जीवन सकारात्मक और निडर होकर जी सके | अपने आप को गुरु या ज्ञानी कहने वाले लोगों को श्री बतरा जी एक बात कहते हैं कि दूसरों को परामर्श देने से पहले अपनी बात का तर्क अवश्य सोचना चाहिए !
Vijay Batra (KARMALOGIST) का कहना है कि :
- यदि पत्थरों को पहनने से भाग्य बदलता तो पहले उन खानों और पहाड़ों का भाग्य बदलता जहाँ पत्थर होते है !
- यदि दिशाओं से व्यक्ति की दशा बदलती तो पृथ्वी पर रहने वाले किसी एक दिशा के लोग ही सुखी होते !
- कुंडली में ग्रहों के घर देखने वालो को कर्म पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि ग्रह इतने छोटे नहीं है कि उनके घर हो !
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