धर्मपत्नी का अर्थ

मैं (Karmalogist Vijay Batra) कुछ लोगों को धर्म और अध्यात्म से सम्बंधित उनके प्रश्नों के उत्तर दे रहा था, दिन करवाचौथ का था इसलिए पति-पत्नी के संबंधों और समस्याओं से सम्बंधित चर्चा आरंभ हो गयी थी, तभी एक सज्जन ने एक प्रश्न पूछा कि धर्मपिता, धर्ममाता, धर्मभाई, धर्मबहन, धर्मपुत्र इत्यादि का अर्थ है कि मैं इनके साथ सम्बन्ध मानता हूँ परन्तु यह सगे नहीं है तो पत्नी के लिए धर्मपत्नी शब्द क्यों प्रयोग किया जाता है, इसका क्या कारण है क्या पत्नी सगी नहीं है ?

प्रश्न सुनकर सभी लोग हंसने लगे जिससे वहां का वातावरण गंभीर चर्चा से हास्य चर्चा में परिवर्तित हो गया परन्तु मै अपने स्वभाव और अभ्यास के कारण गहरे विचार में डूब गया और कुछ ही क्षण में मुझे इसका उत्तर मिला जो मैंने उन सभी को भी सुनाया |

प्रश्न : धर्मपत्नी का अर्थ क्या है ?

उत्तर : पति-पत्नी शब्द पुरुष प्रधान समाज ने बनाये है, केवल पति और पत्नी शब्द से ही समाज की मानसिकता समझी जा सकती है | पत्नी को धर्मपत्नी कहने के पीछे क्या कारण है इसको समझने से पहले पति और पत्नी शब्द के अर्थ को समझना अति आवश्यक है |

पहले बात पति शब्द की करते है, लखपति या करोडपति इसका सीधा अर्थ है कि व्यक्ति लाख या करोड़ का स्वामी है, जिसकी लाख या करोड़ की पत (इज्जत, सम्मान, प्रतिष्ठा, आदर) है और इस लाख या करोड़ के धन पर व्यक्ति का पूरा अधिकार भी है जिसे व्यक्ति जैसे चाहे अपनी इच्छा, आवश्यकता या विवशता के समय में प्रयोग कर सकता है और साथ ही इस धन की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी इसी व्यक्ति की है | पत्नी को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक सुरक्षा देने वाला व्यक्ति उसका पति कहलाता है जो अपनी इच्छा, आवश्यकता और विवशता के समय पत्नी का प्रयोग अथवा दुरूपयोग भी करता है |

ऐसे तो सभी संबंधों के स्वार्थ है, बिना स्वार्थ कोई सम्बन्ध नहीं चलता परन्तु पत्नी के साथ धर्म शब्द ने पति पत्नी के सम्बन्ध को दूसरे संबंधो से भिन्न किया है जिसे हर व्यक्ति समझना चाहता है |

धर्म का अर्थ नियम है !

धर्म,  व्यक्ति को अपने नियमों की पालना करने के लिए बाध्य करता है | व्यक्ति अपने धर्म के अनुसार नियमों की पालना करे इसके लिए सभी नियमों के साथ कोई ना कोई भय और कष्ट का तर्क भी बनाया गया है इसलिए व्यक्ति किसी भी नियम का पालन तब तक करता है जब तक उसे भय होता है |

धर्म शब्द को पत्नी से पहले जोड़ कर सम्बन्ध की स्थापना और शुरुआत की गयी थी जिसका मुख्य उद्देश्य यह था कि पत्नी समाज द्वारा बनाये और बताये गए नियमों के अनुसार चलने के लिए बाध्य रहे और उसे सदैव धर्म का भय रहे | पुरुष प्रधान समाज ने ही कुछ बातो का दुष्प्रचार भी किया जो हर स्त्री को बताए गए पत्नी-धर्म पर चलने के लिए विवश करता है | इसमें मुख्य दुष्प्रचार यह है कि अच्छी धर्मपत्नी होने पर ईश्वर प्रसन्न होते है और अच्छी पत्नी बनने के लिए सात जन्मों तक एक ही पति की पत्नी होना अति आवश्यक है |

एक दुष्प्रचार यह भी फैलाया गया है कि पत्नी की मृत्यु पति से पहले होना अच्छी बात है यानी मृत्यु के समय स्त्री सुहागन हो | विचारणीय बात तो यह है कि पत्नी की मृत्यु पहले होगी तो अगले जन्म में उसी व्यक्ति की पत्नी कैसे बनेगी जिसकी मृत्यु अपनी पत्नी  की मृत्यु के दस बीस साल बाद होगी | यदि किसी पत्नी की मृत्यु पहले हुई है तो पत्नी का अगला जन्म भी पहले होगा, ऐसी स्थिति में उसी पति की पत्नी बनना असंभव सा लगता है | मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि सात जन्म तक एक ही पति मांगने वाली पत्नियों के पतियों की मृत्यु अपनी पत्नियों से पहले होनी चाहिए | मैं केवल यह कहना चाहता हूँ कि हमें अंधविश्वास पर नहीं चलना चाहिए | 

आइये अब पत्नी का अर्थ भी समझ लेते है, पति शब्द में न अक्षर को सम्मिलित करके पत्नी शब्द का निर्माण किया गया है |

पत्नी (पत + नहीं)

पुरुष प्रधान समाज ने पत्नी को अधिकार, सम्मान से वंचित रखने के लिए पत्नी शब्द का निर्माण किया और उसके लिए ऐसे नियम बनाए जो पति पर लागू नहीं होते, जो मर्यादा के नाम पर केवल पत्नी को ही निभाने पड़ते है | सत्य यह है कि पति-पत्नी एक दूसरे के पूरक है जो मानसिक, शारीरिक और आर्थिक आवश्यकताओं में एक दूसरे का साथ देते है |

पत्नी के साथ धर्म जोड़ने का एक और अर्थ भी है जो बहुत ही गंभीर है | व्यक्ति अपने धर्म को कभी भी अपनी आवश्यकता या विवशता ( सुविधा या असुविधा ) के अनुसार बदल सकता है | प्राय: ऐसे बहुत से लोग अपने आसपास देखे जाते है जो अपनी इच्छा से अपने गुरु, इष्टदेव या धर्म को बदल लेते है क्योंकि उनकी आवश्यकताएं और आशाएं उस गुरु, इष्टदेव या धर्म से सम्पूर्ण नहीं हो रही होती | ऐसे ही जब व्यक्ति की आशाएं और आवश्यकताएं अपनी पत्नी से पूर्ण नहीं होती तो वह धर्म(पत्नी) को बदलने में ही सुख और समझदारी समझता है |

पिछले 20 साल के मेरे अनुभव के अनुसार पत्नी अब पति से नहीं बल्कि धर्मपति से विवाह करती है क्योंकि समय के साथ साथ उसने अपनी मानसिक, शारीरिक और आर्थिक सुरक्षा करना सीख लिया है | पत्नी को समान आदर सम्मान, अधिकार और पूर्ण सुरक्षा देने को अपना कर्तव्य समझने वाला व्यक्ति पति कहलाने योग्य है |

Written by Karmalogist Vijay Batra 

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