कर्मकांड कितने सही है ?

कर्मकांड कितने सही है ?

आत्मा अमर है, ना जलती है ना गीली होती है, ना ही इसे भूख प्यास लगती है ना ही इसके लिए दुःख सुख है, स्पर्श और अनुभव केवल शरीर से होता है । संसार के जितने भी संबंध है वह सब मनुष्य द्वारा संसार को नियमित रूप से चलाने के लक्ष्य से बनाये गए है ।  संबंध केवल सांसारिक है मृत्यु के बाद आत्मा का किसी के साथ संबंध नहीं रहता क्योंकि आत्मा ने अगले किसी शरीर को धारण करना होता है । आत्मा को परमात्मा का अंश माना गया है और यह कर्मो के आधार पर अलग अलग शरीर धारण करती है, आत्मा का सांसारिक संबंधो से कोई लेना देना नहीं है ।

कहा जाता है कि आत्मा कर्मों के आधार पर मनुष्य के अतिरिक्त ८४ लाख प्रकार के शरीर धारण करती है । मनुष्य की मृत्यु के पश्चात उसके मोक्ष के लिए अनेको कर्मकांड, धर्म क्रियाएं, अनुष्ठान, संस्कार समारोह इत्यादि किये जाते है । विचार करने वाली यह बात है कि कर्मकांड करने से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है या यह सब रस्में दिखावे और लाभ के लिए बनायीं गयी है?  मनुष्य के अतिरिक्त किसी अन्य जीव जंतु की कोई कर्मकांड, क्रिया, अनुष्ठान इत्यादि नहीं होते तो क्या उन आत्माओं को मोक्ष नहीं मिलता ?

मनुष्य मृत्यु के बाद मोक्ष के लिए किये गए अनेकों प्रयास के बाद भी प्रेतात्माएं  मनुष्य की आत्मा ही बनती है किसी और जीव जंतु की नहीं । अनेको लोगो को प्रेतआत्माओं का आभास होता है जिनमे से लगभग सभी लोगो को मनुष्य वाली आकृति ही दिखती या अनुभव होती है । जो आत्मा मनुष्य शरीर धारण करती है मृत्यु पश्चात अनेकों कर्मकांडों के बाद भी उसकी आत्मा अगले शरीर (जनम) के लिए भटकती है । जीव जंतुओं की मृत्यु के बाद कोई कर्म काण्ड ना होने पर भी उन्हें अगला शरीर मिल जाता है ।

एक बात और विचार करने योग्य है कि यदि मृत्यु के पश्चात आत्मा ने दूसरे शरीर को धारण कर लिया है तो उसके लिए खिलाया खाना उसको कैसे पहुंचेगा? यदि कर्मकांडों से आत्मा का मोक्ष हो गया है तो खाना खिलाने वाला कर्म तो निष्फल ही जायेगा । हर साल मृतकों के नाम का खाना खिलाना या दान देना किसी निजी लाभ के लिए बनाये भय या भ्रम का हिस्सा हो सकता है । इस भय के कारण मृतक संबंधियों के लिए पकवान खिलाये जाते है चाहे उनके जीवन काल में उन्हें पानी भी ना पूछा गया हो । इसका यह भी अर्थ हो सकता है कि यह सब कर्मकांड प्रेतात्माओं का भय बताकर निजी लाभ के लालच से कराये जाते है ।

यदि आत्मा को अपने कर्मों के अनुसार ही नया शरीर (जन्म और मृत्यु) मिलते है तो भय या भ्रम में किये कर्मकांडों का क्या लाभ है ?

यदि कर्मकांडों से मोक्ष मिल जाता तो अच्छे कर्म करने की क्या आवश्यकता होती क्योंकि मृत्यु के बाद हमारी प्रेतात्मा के डर से संबंधी ही सारे कर्मकांड कर देते और मोक्ष हो जाता ।

मेरी किसी से निजी ईर्ष्या नहीं है मैं केवल इतना कहना चाहता हूँ कि अपना समय, धन और शक्ति का प्रयोग किसी कर्म के तर्क को समझने के पश्चात ही करना चाहिए ।

KARMALOGIST  VIJAY  BATRA